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किन कारणों से गाय दूध नहीं दे पाती है? क्या है समाधान?

गौशालाएं भारतीय समाज, सभ्यता और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। आंकड़ों के अनुसार २०१८-१९ के वित्तीय वर्ष में भारत में कुल ३० करोड़ मवेशी दर्ज हैं जिनसे १८ करोड़ टन दूध निकला जाता है।

इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए ये अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है के डेरी और उससे जुड़े भिन्न प्रकार के व्यवसाय एंव उपलब्धियां देश की अर्थव्यवस्था पर किस तरह असर डालती हैं। ऐसे में डेरी से जुड़े लोगों के लिए गाये का स्वस्थ्य एंव उसके दूध का अधिकतम उत्पादन कितना महत्व रखता है। 

इस लेख में आप यह जानेंगे उस सभी कारणों को जिनके वशीभूत गाय या अन्य मवेशी दूध में असक्षम हो जाते हैं, क्यों गाय का दूध नहीं उतरता है और साथ ही साथ उन सभी कारणों के न्यूनीकरण के तरीकों पर भी रौशनी डालने का पूर्ण प्रयास किया जाएगा।

1.     ऊष्मागत तनाव- गर्मी व उमस मवेशियों के लिए उतनी ही तनावदेह होती है जितनी मनुष्यों के लिये। इसके कारण उनमे भूख की कमी व चिड़चिड़ापन आना अनिवार्य है जिसके कारण चारे के सेवन में कमी आजाती है और दूध का उत्पादन प्रभावित होता है।

2.     गौशाला में अतिसंकुल- अधिकतर पशुपालक ज़्यादा लाभ कमाने के लिए ज़्यादा मवेशियों को बिना प्रबंध व व्यवस्था के काम जगह में पालते हैं जिसके कारण एक विशिष्ट मवेशी पर्याप्त चारा नह ग्रहण कर पता और काम दूध उत्पन्न करता है।

3.     चारे में अनाज की कमी- ग्रीष्म ऋतू में अनाज की अल्पता स्पष्ट है अतः चारे में इसका घटाव भी देखने को मिलता है। दुधारू पशुओं के चारे में अनाज का काफी महत्व है जिसकी कमी उनके दुग्ध उत्पादन पर सीधी प्रभावशील होती है।

4.     बीमारियां व विषाक्त चारा- मवेशी सम्बन्धी बीमारियां जैसे स्तन की सूजन, बुखार इत्यादि मवेशी के स्वास्थ्य पर गहरा असर डालसकता है। इसके इलावा चारे में मिश्रित कवक व फफूंद से निकलने वाले विषैले द्रव्य भी पशु के स्वस्थ्य पर प्रभाव दाल सकते हैं जिससे दुग्ध उत्पादन प्रभावित होता है। 

उपरिलिखित कारक  अधिकतर उपेक्षित दुग्ध उत्पादन का कारण बनते हैं और इनकी जानकारी की कमी इस समस्या को दीर्धकालिक भी बना सकती हैं। आएं जानें किन-२ उपायों को आप गाय का दूध उतरने का घरेलु उपाय कह सकते है।

1.       पर्याप्त वातायन व्यवस्था- ग्रीष्म ऋतू की गर्मी और उससे उत्पन्न होने वाली उमस की पर्याप्त व्यवस्था पशुओं के दुग्ध उत्पादन में लाभकारी साबित हो सकती हैं। इससे मवेशी खुशहाल रहेंगे एंव चारे का उचित सेवन करेंगे। इसके लिए आप गौशाला में पंखे या पानी के कूलर की व्यवश्ता कर सकते हैं।

2.       पर्याप्त शुष्क अवधि- दो सप्ताह की अवधि के लिए मवेशी को शुष्क रखा जाये अर्थात उससे दुग्ध न दुहा जाये। इसके दौरान पशु की देख भाल और उसके पोषण का खास ध्यान रखना अनिवार्य है।  आप इसे गाय या भैंस के दूध उतरने का मंत्र भी कह सकते हैं।

3.       गौशाला का विस्तार – गौशाला के स्थान को पशुओं के लिए फैला देने और नादों की संख्या बढ़ाने से पशु आसानीपूर्वक चारे का सेवन कर सकेंगे और दुग्ध उत्पत्ति में विरद्धि भी देखने को मिलेगी।

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